संविधान की प्रस्तावना में 'सेक्युलर' और 'सोशलिस्ट' शब्द - एक तार्किक विश्लेषण

संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा जोड़े गए दो शब्द “सेक्युलर” और “सोशलिस्ट” जिनका हिन्दी रूपांतरण क्रमशः “पंथ-निरपेक्ष” और “ समाजवादी ” के रूप में किया जाता है, भारतीय राजनीति में एक प्रमुख मुद्दा हैं। एक तरफ कांग्रेस (वर्तमान में उसकी अन्य सहयोगी पार्टियां भी) जहां इन शब्दों को बनाए रखने के पक्ष में हैं दूसरी तरफ हिन्दुत्व विचारों से जुड़े हुए राजनीतिक और गैर राजनीतिक संगठन इस प्रस्तावना संशोधन का विरोध करते रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी में एक वर्ग इस विरोध के स्वर को मुखरता से उठाता है परंतु विभिन्न कारणों से भारतीय जनता पार्टी स्पष्ट रूप से प्रस्तावना पर अपने विचार नहीं रखती। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नें हाल ही में इस विषय पर स्पष्टता से बात रखी जब राष्ट्रीय सह-कार्यवाह होसबोले जी नें इस विषय पर वक्तव्य किया। दोनों शब्दों का विरोध नया नहीं है बल्कि 1976 के बाद से ही अलग-अलग स्थानों पर अनेक संगठनों नें इस विषय को उठाया है परंतु राजनीतिक दलों में इसको लेकर न कभी मुखरता देखी गई और न ही अकादमिक चर्चा के केंद्र में यह विषय रह पाया। इन दोनों ...