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How Ancient Indian Thought Shaped Plato & Aristotle

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Prime Minister Narendra Modi, while setting the goal of making India a developed nation, stated that history provides a time period in the life of any nation when it can accelerate its journey of progress. The 25 years leading up to 2047 represent such a precious period for India. This is a defining era in India's history when the country is poised to take a great leap forward. During this period, it is not just about achieving new heights but also about reclaiming what has been lost. Additionally, it is about asserting what rightfully belongs to India but has been forgotten so that the nation receives its due respect. The time that India had been waiting for is here, and so is the vital energy that has, from time to time, safeguarded the nation. The Prime Minister emphasized that while many great civilizations have perished, the soil of India holds a unique consciousness and life force that has preserved this nation from time immemorial until today. Due to the education system...

नैतिकता का संकट: समाज, संस्थाएं और संसद

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एक समय था जब नैतिक शिक्षा स्कूल पाठ्यक्रम का अभिन्न हिस्सा थी , लेकिन आधुनिकता के नाम पर इसे शिक्षा व्यवस्था से लगभग हटा दिया गया। परिणामस्वरूप , नैतिकता केवल चर्चा का विषय बनकर रह गई , परंतु व्यवहार में उसका स्थान लगातार घटता जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि समाज अपने नियम स्वयं बनाता है , और यह प्रक्रिया दीर्घकालिक होती है। प्रत्येक समाज अपने विचारों से निर्मित होता है , और जब वह किसी विचार को अपना लेता है , तो उसे दृढ़ता से बचाव करने का प्रयास भी करता है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब राज्य व्यवस्था समाज पर अपने विचार थोपने लगती है और समाज को अपने परंपरागत विचारों की रक्षा का अधिकार भी छीन लिया जाता है। समाज यदि बाहरी बंधनों से मुक्त नहीं होगा , तो उसका विकास अवरुद्ध हो जाएगा। आज भारतीय समाज जिस दमनकारी स्थिति में है , उसका मूल कारण यही है कि हमने समाज को अनावश्यक रूप से जकड़ दिया है। समाज की सोचने , निर्णय लेने और अपने मूल्यों को संरक्षित रखने की स्वतंत्रता सीमित कर दी गई है। परिणामस्वरूप , हमें मूलभूत नैतिकता जैसे विषयों पर पुनर्विचार करना पड़ रहा है। समाज की संरचना व्यक्त...

भारतीय समाज में अंतर्निहित समरसता, समग्रता या समावेशिता

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भारतीय राजनीतिक सिद्धांत जिस दर्शन के आधार पर खड़े हुए हैं उनमें ऐसी सामाजिक मूल्य समाहित हैं जोकि वर्तमान का न सिर्फ आवश्यक तत्व है बल्कि इसके लिए पश्चिमी जगत काफी प्रयास कर रहा है। इन्हीं मे से एक है समग्रता। सामाजिक समरसता समाज का वह आवश्यक तत्व है जिसके न होने पर समाज में अनेक विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। विभिन्न समस्याओं का उद्भव समाज कि इस आम स्थिति से ही होता है जहां विभिन्न मत, पंथ और वर्ग होते हैं परंतु सभी को साथ लेकर चलने वाली व्यवस्था नहीं होती। पश्चिमी जगत अनेक समस्याओं कि जड़ इसी स्थिति को मानता है इसलिए हमें आवश्यकता पड़ती है एक नए शब्द के बारे में पढ़ने कि जो सामाजिक समरसता या समग्रता कहलाती है। Inclusiveness शब्द आजकल पश्चिमी जगत में काफी ट्रेंड में है और न सिर्फ अपने स्तर पर बल्कि दूसरे देशों को भी इसी शब्द पर काफी ज्ञान दिया जा रहा है। क्या वाकई सामाजिक समरसता को बनाने के लिए हमें कुछ विशेष उपाय करने चाहिए? क्या सामाजिक समग्रता को हमारे समाज में स्थापित करना चाहिए? सीधा सा उत्तर है कि यह हमारे समाज का काफी पहले से ही अभिन्न हिस्सा रहा है। भारतीय परंपराओं में, रीतिरिवाज...

हिन्दू राष्ट्र का मार्ग - संविधान सभा व सरकार की भूमिका

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स्वतंत्रता के 75 वर्ष वाद वह समय आगया है जब भारत स्वयं के महत्त्व को विश्व स्तर पर पहचानने लगा है। विश्व बन्धुत्व और शांति के मार्ग पर वर्तमान समय में भारत से बेहतर प्रयास किसी भी देश के नहीं है। विश्व राजनीति में रूचि रखने वाले विश्व के विभिन्न संस्थान और अलग-अलग देशों में नीति निर्धारण में प्रमुख योगदान निभाने वाले थिंक टैंक अपनी रिपोर्ट में बता रहे हैं कि भारत अप्रत्याशित तरीके से महत्वपूर्ण भूमिका में आ रहा है। भारत सिर्फ आर्थिक ही नहीं, सैन्य ही नहीं बल्कि कुटनीतिक स्तर पर अपने स्वयं के विवादों से भी आगे बढ़ विश्व में उपस्थित अन्य विवादों, मसलों और चिन्तन समूहों में भी समाधान करने में अग्रणी बन रहा है। एक दशक में भारत ने पश्चिमी देशों के समूहों की सदस्यता प्राप्त करने वाले प्रयासों से आगे बढ़ स्वयं के द्वारा समूह बनाने और दुनिया को उसमें शामिल करवाने की जो शक्ति प्राप्त करी है वो अप्रत्याशित है। वर्तमान समय में इजराइल और फिलिस्तीन विवाद पर भारत के अतिरिक्त कोई देश नहीं जो समान रूप से दोनों देशों के सम्पर्क में है। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी भारत के अतिरिक्त कोई देश नहीं जो भारत से ज्य...

कुतुब मीनार नहीं विष्णु ध्वज है असली इतिहास - इतिहास से छेड़छाड़ का विस्तृत प्रमाण

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महरौली स्थित क़ुतुब मीनार इतिहास के उसी पन्ने का हिस्सा है जो न सिर्फ अपष्ट है बल्कि जानबुझकर छेड़छाड़ कर उसे विकृत भी किया गया है. इस्लामिक वास्तुकला के नायाब उदाहरण के रूप में प्रस्तुत की जाने वाली कुतुबमीनार के इस तथ्य से सभी परिचित हैं कि पुरे परिसर का निर्माण हिन्दू और जैन मन्दिरों को तोड़कर किया गया लेकिन यह भी एक तथ्य है कि कुतुबमीनार का निर्माण इस्लामिक आक्रान्ताओं ने नहीं बल्कि उससे काफी पहले हो चुका था. उन्होंने सिर्फ इसको एक इस्लामिक ढांचे में बदल दिया. 

प्राचीन शहर रोम का इतिहास और उससे जुड़ी कहानियाँ

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इटली की राजधानी रोम एक प्राचीन शहर होने के साथ साथ इतिहास के प्राचीन एतिहासिक रोमन साम्राज्य का केंद्र बिंदु भी है और लुप्त हो चुके रोमन धर्म का उत्पत्ति स्थल भी. यूरोप और पश्चिमी एशिया के इतिहास में रोम प्रमुख है. जितना पुराना रोम है उतनी ही ज्यादा उसकी कहानियां और कहानियों से ही भारत के लिए रोम रुचिपूर्ण शहर बन जाता है     

कांग्रेस की देन नहीं है स्वतंत्रता - सैनिकों की क्रांति से मिली आजादी

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  देश को आजादी भले ही कांग्रेस की देन बताई जाती हो लेकिन एतिहासिक सत्य यह है कि मुंबई में भारतीय सैनिक क्रांति नहीं करते तो भारत आजाद नहीं होता. कांग्रेस के 1942 में चले ‘भारत छोडो आन्दोलन’ को दो वर्ष में ही अंग्रेजों ने कुचल दिया और लगभग पूरी कांग्रेस जेल में डाल दी थी. स्वयं महात्मा गांधी को जेल से तभी छोड़ा गया जब वो मृत्यु के निकट पहुँच गये. असफल आन्दोलन के बाद भी स्वतंत्रता को कांग्रेस की दें बता दिया गया जबकि असली कहानी छुपी रही.